ISBN : 978-93-6087-283-0
Category : Academic
Catalogue : Social
ID : SB20959
Paperback
299.00
e Book
149.00
Pages : 113
Language : Hindi
वैदिक साहित्य हमारे पूर्वज महामनीषियों ऋषियों द्वारा प्रणीत हैं। उन्होंने बहुत विचार मंथन के पश्चात् यह बात कही कि "स्वर्गकामो यजेत" एवं "यज्ञो वै श्रेष्ठतमम् कर्म"। अर्थात् सुख की कामना करने वाला यज्ञ अवश्य करें । महर्षि याज्ञवल्क्य कहते हैं-यदि किसी व्यक्ति को यज्ञ करने के लिए किसी प्रकार की सामग्री ना भी मिले तो वह ध्यानस्थ होकर मन से भी यज्ञ कर सकता है। श्रीमद्भगवद्गीता में जिस ग्रंथ को हम सभी असाधारण एवं प्रामाणिक मानते हैं, वहां पर भी विस्तार से यज्ञ की विशेषता बताई गई है। यज्ञ से आध्यात्मिक, आधिदैविक एवं आधिभौतिक लाभ मिलते हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में इन्हीं विषयों पर विचार विमर्श किया गया है।