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ISBN : 978-81-961227-2-0
Category : Non Fiction
Catalogue : Poetry
ID : SB20425

नाम क्या दूँ?

गीतावली
 4.0

Dr. Chiranji Lal 'Chanchal'

Hardcase
1500.00
e Book
149.00
Pages : 103
Language : Hindi

About author : नाम : डॉ चिरंजी लाल ‘चंचल’ जन्म तिथि : 05-01-1950 पैत्रक निवास : मौहल्ला भूवरा, टाउन एरिया– मसवासी जनपद-रामपुर, उत्तर प्रदेश पिता का नाम : निर्वाण प्राप्त श्रध्देय कड़ढे लाल जी माता का नाम - निर्वाण प्राप्त श्रध्देया (श्रीमती ) मंगिया देवी जी शिक्षा : एम० ए० (हिन्दी, संस्कृत, दर्शनशास्त्र), बी० एड०, पी० एच० डी० कार्य क्षेत्र : सेवानिवृत प्रवक्ता, हिन्दी संस्कृत, सनातन धर्म इन्टर कालेज, रामपुर सम्प्रति : संस्थापक एवं प्रबन्धक, इनोवेटिव पब्लिक जूनियर हाई स्कूल, मुरादाबाद प्रकाशित कृतियाँ 1. ऐसे न समर्पण कर दूँगा (गीतांजलि) 2. बिखरा हूँ मैं (ग़ज़लें) 3. कैसे न समर्पण कर दूँगा (गीतांजलि) 4. संसार क्या जाने (ग़ज़लें) 5. सूरज निकलता नही (कवितांजलि) 6. हार नही मानूँगा (कवितांजलि) 7. क्या इस ब्यूह को तोड़ सकोगे (कवितांजलि) 8. चतुर्दिक नमन (खण्ड काव्य) 9. मुक्तकांजलि 10. दोहांजलि (भाग एक) 11. दोहांजलि (भाग दो) 12. बैठे हैं तैयार (कवितांजलि) 13. तुम्हारा क्या? (कवितांजलि) 14. यह कैसा जनतंत्र (कवितांजलि) 15. तथाता (गीतावली) 16. अथोsहम (गीतावली) 17. तथात्वम (गीतावली) 18. सम्मासती (गीतावली) 19. अपने दीपक आप सभी (गीतावली) सम्मान : दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा डॉ० अम्बेडकर फेलोशिप, डॉ० अम्बेडकर मेमोरियल ट्रस्ट अलीगढ़ द्वारा अन्तराष्ट्रीय भीम रत्न पुरस्कार, भारतीय बौध्द महासभा उ०प्र० द्वारा साहित्य एवं समाज के क्षेत्र में दी जाने वाली डॉ० अम्बेडकर फेलोशिप से सम्मानित, अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध I सम्पर्क सूत्र : इनोवेटिव पब्लिक स्कूल, निकट चौहानों की मिलक, मण्डी समिति रोड मुरादाबाद उ०प्र० पिन- 244001, मोब.न. 09997344811, 09897777499 Email ID:shilshasta1950@gmail.com

About book : ऐसे अनेक प्रज्ञालब्ध लोग इस संसार में हुए जो जीवन पर्यन्त जनहित के कार्यों में संलग्न रहे उन्हें कभी नाम जताने की आवश्यकता महसूस नहीं हईु। अनेक कवियों, लेखकों, वैज्ञानिकों, कथाकारों और समाज सुधारकों ने जीवन पर्यन्त कार्य किया और अपने विषय में कहीं कोई एक शब्द तक नहीं लिखा। उनके पास इतना समय ही नहीं था कि अपने लक्ष्य की तदाकारता पृथक हो सकते थे। वे अपने काम में इतने तल्लीन रहे उसमें उनकी तदाकारता इनकी सघन रही वे नाम के विषय में सोच ही न सके। अन्वेषक अन्वेषण में वैज्ञानिक नयी.नयी खोजों में और जो जिस क्षेत्र में बहुत आगे तक जाना चाहते थे उनके द्वारा कभी मुड़ के पीछे की ओर अपने नाम के विषय में विचार नहीं किया गया। पहले काम बाद में नाम के लिए सोचा जाएगा यदि समय मिला तो। विलियम शेक्सपीयर एक महान नाटककार जिनको इंग्लेन्ड का कालिदास कहा जाता है। उनके द्वारा अनेक नाटकों की रचना की गयी। वे अपने लेखन में इतने संलग्न रहे कि नाम की कभी परवाह ही नहीं की। उनकी एक कृति का नाम है “एज यू लाइक इट” तुम इसे जैसा चाहते हो। उनके द्वारा नाम का काम पाठकों पर छोड़ दिया गया। वे उसे जैसा पसन्द करें वैसा नाम कृति को दे दें। अतीत में ऐसे अनेक कविगण और कथाकार हुए, जिनके विषय में अनेक अध्येता अध्ययन करके भी उनकी जीवनी को यथार्थ तथ्यात्मक नहीं बना पाए हैं। केवल अनुमान के आधार पर ही कुछ निष्कर्षों को वे समाज के सामने रख सके हैं। नाम क्या दूँ ? इस कृति की भी जब सारी रचनाएं अस्तित्व में आ गयीं, तब सोचा गया। इनको एक साथ रख किस पुस्तक के नाम से छपवाया जाए, तब कुछ समझ में न आने की स्थिति में इस कृति का नाम ही ये रख दिया गया। “नाम क्या दूँ” इसकी समस्त रचनाएं सामाजिक ताने.बाने का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करती हैं। ये अपने समय के समाज उसमें घटने वाली घटनाओं, उसमें होने वाले उत्थानों और पतनों का साकार स्वरूप प्रस्तुत करती। सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक संघटन और विघटन की पस्थितियों को उनके माध्यम से शब्दामित किया गया है। जन हित में कौन सार्थक है और कौन निरर्थक हैं। कौन समाज का मार्ग प्रशस्त और कौन अवरुध्द कर रही हैं। इस चिन्तन और मनन इनके द्वारा किया गया है। रचनाकार की नितान्त व्यक्तिगत मनः स्थिति उसका सामाजिक सरोकारों के प्रति दायित्व और दृष्टिकोण का इनमें परिपाक सन्निहित है। अनाशक्त, विरक्त और निर्देश भाव क

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