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ISBN : 978-93-90290-93-2
Category : Fiction
Catalogue : Poetry
ID : SB20088

मंदोदरी

NA
 5.0

Ashok Nishant

Paperback
120.00
e Book
70.00
Pages : 56
Language : Hindi
PAPERBACK Price : 120.00

About author : अशोक निशान्त अपनी किशोरावस्था में कोलकाता प्रवास के समय स्थानीय साहित्यिक संस्था 'आकूत' से जुड़े रहे। इनकी रचनाएँ संस्था की पत्रिका 'आकूत ' में प्रकाशित होती रहती थी । पर्याप्त अन्तराल के बाद इनका खण्डकाव्य 'मंदोदरी ' देखकर अतीव प्रसन्नता हुई।

About book : हेमा अप्सरा से उत्पन्न मय असुर की कन्या मंदोदरी में माता के कारण देव-संस्कृति का संस्कार था। मंदोदरी की गणना प्राय: स्मरणीय पंच कन्याओं में की जाती है। यह सप्तर्षि मंडल के श्रेष्ठ ऋषि पुलस्त्य के पौत्र महा पराक्रमी रावण से ब्याही गई थी। इसे अपने इस पवित्र कुल की मर्यादा का भी भान था। उसके प्रति रावण ने ब्रह्मा से सुर-नर से अवध्य होने का वर पाने के कारण श्रीराम के अतिमानवीय कार्यों को देखते हुए भी उन्हें नर मानकर वैर कर लिया। उनकी धर्मपत्नी सीता का हरण कर लिया। नाना माल्यवान और अनुज विभीषण के समझाने पर मद में चूर उसने उनका त्याग कर दिया। मंदोदरी उसे बार-बार सत्परामर्श देती रही। पुत्र और भाई का वध हो जाने पर भी रावण ने राजरानी मंदोदरी की बात न मानी और कुल का सर्वनाश करा दिया। उपर्युक्त वर्णन तो सर्वत्र मिलता है किन्तु प्रस्तुत खण्डकाव्य का संदेश कुछ और है। मंदोदरी अनुभव करती है कि मात्र परामर्श देना ही स्त्री का धर्म नहीं है उसे अधर्म का डटकर प्रतिवाद करना चाहिए। उसे दुःख है कि ऐसा वह न कर सकी और इसके लिए वह अपराधिनी भी है। मंदोदरी की भूमिका नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक नया प्रयास है। इस सन्दर्भ में प्रस्तुत खण्डकाव्य की कुछ पंक्तियाँ द्रष्टव्य है: भार्या क्या, पति को भ्रष्ट पथ से न विमुख कर सके प्रतिकूल स्थिति में जो नारी मूर्त रूप न बन सके।   हाँ थूके मुझपर, अवश्य ही सारा जग भले ही थूके पर मेरी दुर्दशा देख, निज धर्म से कभी भी न चूके। अनुराग से पति को सत्यकर्म का बोध न करा पाये यद्यपि नारी नहीं, मुझसा कुछ और ही कहलाये ।

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