shashwatsuport@gmail.com +91 7000072109 B-75, Krishna Vihar, Koni, Bilaspur, C.G 495001
Mon - Sat 10:00 AM to 5:00 PM
Book Image
Book Image
Book Image
ISBN : 978-93-6087-807-8
Category : Non Fiction
Catalogue : Poetry
ID : SB21064

इस कोलाहल में मेरी कौन सुने

na
 5.0

नवल बाजपेयी

Paperback
299.00
e Book
99.00
Pages : 90
Language : Hindi
PAPERBACK Price : 299.00

About author : ‘इस कोलाहल में मेरी कौन सुने’ के रचयिता नवल बाजपेयी वर्तमान में अटल बिहारी वाजपेयी - भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन संस्थान, ग्वालियर में प्रबंधन विषय में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। सांख्यिकी विषय में स्नातकोत्तर प्रोफेसर नवल बाजपेयी ने प्रबंधन विषय में भी स्नातकोत्तर एवं पीएचडी डिग्री अर्जित की है। प्रोफेसर नवल बाजपेयी सांख्यिकी एवं प्रबंधन विषय में अनेक प्रसिद्ध पुस्तकों के लेखक हैं। हिंदी साहित्य में विशेष रूचि रखने वाले प्रोफेसर नवल बाजपेयी का यह प्रथम काव्य संकलन है।आशा है, यह काव्य संकलन पाठकों की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा।

About book : 'इस कोलाहल में मेरी कौन सुने ' शाश्वत पब्लिकेशन प्रकाशित करने जा रहा है इस बात की मुझे हार्दिक प्रसन्नता है। जीवन के अनुभवों में डूबता- तरता, आशा-निराशा का सामना करता हुआ, मेरा प्रयास, इस अनुभव श्रृंखला को काव्य के रूप में प्रकाशित करने का है। हिंदी भाषा में कोई विशेष शैक्षणिक योग्यता न होते हुए भी मैं अपनी मातृभाषा हिंदी में यह काव्य संकलन प्रस्तुत करने जा रहा हूँ। मैंने यह कार्य पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करने का प्रयास किया है, बावजूद इसके त्रुटियों की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है। मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरे अत्यंत विद्वान् एवं सम्मानित पाठकगण संभावित त्रुटियों के लिए मुझे क्षमा करेंगे। यह काव्य संकलन किसी एक विषय को केंद्र में रखकर सृजित नहीं किया गया है वरन यह समय के परिवर्तन के साथ विचारों में होने वाले परिवर्तन को भी प्रतिबिम्बित करता है । कवि मन का इस जीवन के विभिन्न पहलुओं से साक्षात्कार , कुछ मन से और बहुत कुछ अनमना ही, कविताओं के सृजन का मूल आधार है। कविताओं के शीर्षक ही कविताओं के मर्म की व्याख्या करते हैं। पाठक कविताओं को पूर्ण रूप से तो पढ़ेंगे ही, परन्तु कुछ विशेष उल्लेख यहाँ प्रासंगिक ही होगा।कहने- सुनने की भी अपनी एक सीमा होती है। बाहरी कोलाहल ही नहीं, अंतर्मन का कोलाहल भी कहने वाले को और सुनने वाले को, दोनों को ही प्रभावित करता है। पुस्तक का शीर्षक ' इस कोलाहल में मेरी कौन सुने ' इस बात की व्याख्या करता है। विचारों की अनंत श्रृंखला व्यक्तिगत होती है जो अंतर्मन को स्पंदित करती ही रहती है और अंतर्मन के कोलाहल को जन्म देती है। बहुत दुष्कर है अपनी बात कह पाना और उससे भी कठिन है दूसरों की बात सुन पाना। इस काव्य संकलन में एक छोर पर नव वर्ष के आनंद को परिलक्षित करती हुई कुछ कविताएँ हैं, तो दूसरे छोर पर स्वयं को जीवन समर में कमर कस कर उतरने का साहस देती कुछ कविताएँ हैं। कहीं पर मौन का महिमामंडन है, तो कहीं पर बचपन की सुखद यादें हैं। कहीं पर पराजय को पुनः परिभाषित करने के निवेदन के साथ पराजय की स्वीकार्यता है, तो कहीं पर लक्ष्य समर्पित होने का आग्रह है। लगभग सभी लोग यह मानते हैं कि काव्य-प्रतिभा देव आशीर्वाद है, परन्तु डॉ हरिवंशराय बच्चन इस व्याख्या का दूसरा पहलू भी प्रस्तुत करते हैं। डॉ बच्चन अपनी काव्य कृति मधुबाल

Customer Reviews


 

Book from same catalogue