ISBN : 978-93-95362-87-0
Category : Fiction
Catalogue : Poetry
ID : SB20396
Paperback
250.00
e Book
199.00
Pages : 112
Language : Hindi
अप्प दीपो भव रचना चाहे सुखान्त हो या दुखान्त लेकिन वह तुकान्त हो, गेय हो और अपने मीटर में हो। ऐसा मैं सोचता हूँ। गेयता के अभाव में किसी रचना को गीत नहीं कहा जा सकता और कवित्व छन्द् वहर के अभाव में कोई रचना कविता की श्रेणी में नहीं आ सकती। तुकान्त होगी तो उसमें लय, लोच, लावण्य होगा उसका प्रभाव गद्य गीत से अथक अतुकान्त रचना से कहीं अधिक श्रोताओं के मन और मस्तिषक पर पड़ेगा। वह सरलता से समझी जा सकती है। उसके माध्यम से हम अपनी बात सुगमतापूर्वक दूसरों तक पहुँचा सकते हैं। गायक को उसे गाने और श्रोता को उसे सुनने में अधिक श्रम की आवश्यकता नहीं होती। वह अपना सन्देश सीधे सरल रेखा की भाँति वहाँ तक पहुँचा देती है जहाँ उसे पहुँचना चाहिए। रचना को रचते समय उस तथ्य की ओर रचनाकार का ध्यान बार-बार जाना चाहिए कि वह इस रचना के माध्यम से क्या कहना चाहता है? उसका कहने का उद्देश्य और लक्ष्य क्या है? वह ऐसा क्यों करना चाहता है? रचनाकार का आशय सामाजिक, भ्रान्तियों, रूढ़ियों, अन्धविश्वासों, अवैज्ञानिक परम्पराओं, रीतियों, नीतियों और जीर्ण-शीर्ण रिवाजों के प्रति सकारात्मकता पूर्ण सोच है अथवा नकारात्मकता पूर्ण उसकी विचारधारा है। उसका लेखन और सृजन से यह साफ स्पष्ट हो जाना चाहिए कि वह किस पार है। इधर या उधर। वह सामाजिक ढाँचे के प्रति तटस्थ है अथवा उसमें परिवर्तन, परिवर्धन और परिष्करण का इच्छुक है। रचना को गड्डम-गड् होने से उसका सन्देश स्पष्ट नहीं हो पाता। आप तटस्थ हैं या सहमत हैं या असहमत हैं अपनी बात साफ गोई से सामने रखने से हमारा पक्ष स्पष्ट हो जाता है। उसकी रूचि और अरुचि का स्पष्ट बोध हो जाता है। सामाजिक ताने-बाने से यदि आप सहमत हैं तो सहमति के कारणों और असहमत हैं तो असहमति के कारणों को तर्क, विवेक, और विज्ञान की हकीकी यथार्थ दृष्टि से आपको अपना पक्ष पाठकों के समक्ष रखना होगा। यदि ऐसा नहीं किया तो पाठक परिवार आपको उतना नहीं समझ सकेगा जितना आप उसे समझाना चाहते हैं। आप उससे उतने ही दूर हो जायेंगे जितने समीप आप उसके जाना चाहते हैं। ‘अपने दीपक आप सभी’ इस कृति की समस्त रचनाओं के माध्यम से यह सन्देश प्रस्तुत करने का प्रयास है कि सारी सृष्टि के समस्त जीवधारियों में मानव से अधिक सबल, प्रबुद्ध और चिन्तनशील कोई अन्य प्राणी नहीं है। वह अपने जीवन के उद्देश्य को जाने। प्रकृति ने उसका सृजन किस निमित्त किया उ