ISBN : 978-81-19908-40-0
Category : Academic
Catalogue : Reference
ID : SB20830
Paperback
300.00
e Book
150.00
Pages : 154
Language : Hindi
न्यायपूर्ण और सुरक्षित परिवेश की इच्छा विवेकशील मानव का सनातन स्वप्न रहा है, किंतु विश्व की वर्चस्वशाली शक्तियों द्वारा संयोजित ढंग से केवल अपने पक्ष में आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण एवं विस्तार की जाने की प्रवृत्ति रही है, जिसका दूरगामी दुष्परिणाम हमें वर्तमान पर्यावरण संकट के साथ ही विकास की दृष्टि से पृथ्वीवासियों के असुरक्षित भविष्य के रूप में नजर आता है। विडंबना है कि पृथ्वी पर रहने वालों की पर्यावरणीय व विकास संबंधी समस्या का स्वरूप एक होने के बावजूद उसके समाधान की दिशा में अंततः कोई सार्थक प्रगति नहीं दिख पाती है। G20 के आयोजन में मेजबान भारत 200 देश की बैठक में वसुदधैव कुटुंबकम् के विचार के साथ यह संदेश देने में सफल हो सका कि उसमें अंतरराष्ट्रीय हितों का संरक्षक बनने के साथ ही विश्व को समुचित दिशा देने की भी सामर्थ्य है। भारत की चिंतन परंपरा राष्ट्र की सुदृढ़, समृद्ध और लोक कल्याणकारी व्यवस्था के प्रति सदैव गंभीर रही है। वसुधैव कुटुंबकम् के भारतीय आधार वाक्य के भौगोलिक सीमाओं, भाषाओं को और विचारधाराओं के विधि की परवाह किए बिना 'स्व से समष्टि की सोच' एवं 'हम से वयम्' की कल्याण की भावना पर आज विश्व को बल देने की आवश्यकता है, ताकि पृथ्वीवासियों का साझा भविष्य समावेशी और सतत विकास को अनुकूल बनाने में सहायता कर सके।