ISBN : 978-81-19084-17-3
Category : Non Fiction
Catalogue : Poetry
ID : SB20458
5.0
Hardcase
1500.00
e Book
149.00
Pages : 102
Language : Hindi
समस्त सृष्टि का कोई भी प्राणी देश, काल और वातावरण के प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता। वह मूर्त अथवा अमूर्त रूप से किसी न किसी रूप में अवश्य प्रभावित करता है। वह उसके स्वरूप के सम्वेदन को उद्देलित, आंदोलित और सजग स्फूर्त बनाता है। ‘तत्त्वमसि’ इस पुस्तक की समस्त रचनाएँ अपने समय की अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों का लेखा जोखा प्रस्तुत करती हैं। रचनाकार की अपनी व्यक्तिगत अनुभूतियाँ पारिवेशिकता से कितनी जुड़ी है उससे कितनी सहमती अथवा असहमति रखती हैं। इन कविताओं में उसका प्रतिबिम्व समाहित है। इनमें उपदेशात्मकता के स्थान पर कठोर आत्मानुभूति और उसके निष्कर्षों का प्रतिफलन है। मानव को अपने होने का अहसास रहे। वह किसी भी दशा में दिग्भ्रमित न हो वह अलौकिक, पारलौकिक, दिव्य अभौतिक शक्तियों के सामने अपने घुटने न टेके इन रचनाओं के माध्यम से व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसकी वास्तविक वस्तुस्थिति को उसके सामने रखने का प्रयास किया गया है। अंधी गन्तव्यहीन दौड़ किस निमित्त ? हुँँचा-हाँची, खींचा-खाँची, बटोरा-बटोरी का आखिर कोई उद्देश्य तो होगा, किस को ठग रहे हो ? केवल अपने को अपने सिवा किसी दूसरे को नहीं इस तथ्य का यदि बोध हो जाए तो जीवन अधिक सहज और सरल, भार मुक्त हो सकेगा तब जीने में और अधिक रस आ सकेगा। ये प्रयास सतत् रहा है, हर रचना को रचने का कोई उद्देश्य हो। यह कांक्षा कहाँ तक फलित हुई है, ये सुधि पाठकों के अंतर्मन पर कितना और क्या प्रभाव डालती है। इसका रसास्वादन वे पढ़ने के बाद ही कर सकेंगे।
Dr Chiranji Lal Chanchal :
Excellent in thought