कृष्ण से कवि, कवि से कबीरा
5.0
About author : लम्बोदर दास महंत पिता श्री घुरबिन दास महंत लेखक का प्रकृति की ओर विशेष रुझान रहा है क्योंकि लेखक का रहन बसन प्रकृति के अत्यधिक निकट हुआ है हरे भरे पेड़ पौधे और आस पास घने जंगल एवं पहाड़ों से घिरे प्राकृतिक वातावरण ग्राम के पास से सिमा बनाते है । लेखक का प्रकृति के प्रति विशेष लगाव रहा है प्रकृति स्वयं प्रेम का प्रतीक है इसलिए लेखक का प्रेम एवं दर्शन विषय पर विशेष रूचि है । शिक्षा - बी.सी.ए. स्नातक, बी.ए. दर्शन शास्त्र स्नातक । वर्तमान में शरीर रचना विभाग एम्स रायपुर (छ.ग.) में कार्यरत है ।
About book : यह किताब प्रेम दर्शन की ओर उन्मुख करने के उद्देश्य से पाठकों को विनम्र निवेदित है अर्थात एक प्रेमी के रूप में प्राप्त प्रेम के अनुभव का सार है । किस तरह एक सामान्य व्यक्ति अपने जीवन में प्रेमी के रूप में अपनी प्रेम यात्रा को प्रारम्भ करता है । सम्भवतः यह प्रेम की ही महिमा है जिससे कृष्ण के मन में एक कवि भाव का जन्म हुआ है । एक कवि का कल्पना युक्त मनोभाव जो की प्रेम को समझने एवं प्रेमी के अन्दर प्रेम को निखारने में पूर्ण सहायक होता है क्योंकि कवि भाव प्रेमी के उस एकांत एवं मन के सुखे धरातल में प्रेम का सुगंधित पुष्प उगा देता है । कवि मन अपनी कल्पना शक्ति से प्रेमी के मन को उपवन जैसा सजा देता है जिससे उस भाव रूपी उपवन में प्रेमी अपने प्रियसी संग निरन्तर विहार करता रहता है इस भाव निर्मित उपवन में आनंद की घटा हमेशा छायी रहती है । यह इस उपवन की विशेषता है । इस उपवन विहार के माध्यम से प्रेमी अपने प्रियसी को सदैव अपने निकट पता है तथा जिस समय प्रेमी इस उपवन विहार को पूर्ण रूप से सत्य स्वीकार लेता है तो ऐसे प्रेमियों के जीवन में तथा उनके प्रेम सम्बन्ध के मध्य से विरह शब्द सदा सर्वदा के लिए समाप्त हो जाता है । इस स्थिति में आकर एक कवि मन कबीरा मन हो जाता है । प्रेम यात्रा हर एक प्रेमी की आप बीती है जिसमे प्रेमी अपने प्रियसी के माध्यम से प्रेम को सीख रहा होता है मानों प्रेमी के लिए उसकी प्रेमिका कोई व्यक्ति के रूप में एक खुली किताब की तरह होती है जिसका प्रेमी पूर्णमन से अध्ययन कर रहा होता है । प्रेमी के इस अध्ययन का कारण भी प्रेम ही है इस अध्ययन में प्रेमी का साध्य प्रेम स्वरूप परमात्मा होता है और प्रेमी के इस साध्य का साधन प्रिय स्वरूप प्रेमिका होती है ।