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ISBN : 978-93-6087-752-1
Category : Fiction
Catalogue : Poetry
ID : SB21317

जो चाहो जीवन में उत्कर्ष

गीतावली

डॉ० चिरंजी लाल ‘चंचल’

Hardcase
1500.00
e Book
199.00
Pages : 113
Language : Hindi

About author : नाम : डॉ० चिरंजी लाल ‘चंचल’ जन्म तिथि : 05-01-1950 पैत्रक निवास : मौहल्ला भूवरा, टाउन एरिया– मसवासी जनपद-रामपुर, उत्तर प्रदेश पिता का नाम : निर्वाण प्राप्त श्रध्देय कड़ढे लाल जी माता का नाम : निर्वाण प्राप्त श्रध्देया (श्रीमती ) मंगिया देवी जी शिक्षा : एम० ए० (हिन्दी, संस्कृत, दर्शनशास्त्र), बी० एड०, पी० एच० डी० कार्य क्षेत्र : सेवानिवृत प्रवक्ता, हिन्दी संस्कृत, सनातन धर्म इन्टर कालेज, रामपुर सम्प्रति : संस्थापक एवं प्रबन्धक, इनोवेटिव पब्लिक जूनियर हाई स्कूल, मुरादाबाद प्रकाशित कृतियाँ गीतावली 1. ऐसे न समर्पण कर दूँगा 2. कैसे न समर्पण कर दूँगा 3. तथाता 4. अथोsहम 5. तथात्वम 6. सम्मासती 7. अपने दीपक आप सभी 8. नाम क्या दूँ ? 9. तत्त्वमसि 10. शीशों का मसीहा कौन यहाँ? 11. मिला कोई नहीं मिलने 12. हमने कब डाले हथियार 13. जमीं पर हैं पटके 14. तुम कौन हो? 15. भय करता पैदा भगवन 16. जो चाहो जीवन में उत्कर्ष कवितावली 1. सूरज निकलता नही 2. हार नही मानूँगा 3. क्या इस ब्यूह को तोड़ सकोगे 4. बैठे हैं तैयार 5. तुम्हारा क्या ? 6. यह कैसा जनतंत्र दोहावली 1. भाग एक 2. भाग दो खण्ड काव्य 1. चतुर्दिक नमन गज़लें 1. बिखरा हूँ मैं 2. संसार क्या जाने ? मुक्तकावली सम्मान : दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा डॉ० अम्बेडकर फेलोशिप, डॉ० अम्बेडकर मेमोरियल ट्रस्ट अलीगढ़ द्वारा अन्तराष्ट्रीय भीम रत्न पुरस्कार, भारतीय बौध्द महासभा उ०प्र० द्वारा साहित्य एवं समाज के क्षेत्र में दी जाने वाली डॉ० अम्बेडकर फेलोशिप से सम्मानित, अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध I सम्पर्क सूत्र : इनोवेटिव पब्लिक स्कूल, निकट चौहानों की मिलक, मण्डी समिति रोड मुरादाबाद उ०प्र० पिन- 244001, मोब.न. 09997344811, 09897777499 Email ID:shilshasta1950@gmail.com

About book : जो चाहो जीवन में उत्कर्षष् नामक इस काव्य कृति में ऐसे तमाम गीत हैं। जो हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। हमारे चाहने को साकार करने के प्रश्नों का हल खोजने के लिए उद्धत करते हैं। कुछ गीतों में भारत भूमि के यश का गान तुनात्मक रूप से किया गया है। संसार के अन्य देशों की अपेक्षा भारत में क्या उद्भुत, अनुठा और अनुपम है। उस पर प्रकाश डाला गया। भावों की भव्यवता में शब्दों को पिरों कर भावनात्मकता की और अग्रसर किया है। भारतभूमि का उत्थान, उन्नयन और उत्कर्ष ही हमारा उत्थान, उन्नयन और उत्कर्ष है। यदि मातृभूमि देश, काल और वातावरण अनुकूल है तो जीवन में सब कुछ संभव है। उत्कर्ष तक पहुँचने के लिए भी हमें एक रूपरेखा, एक सोपान बृद्धता को आत्मसात करना होगा। तभी हम उत्कर्ष तक पहुँच सकते हैं।

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