गीतावली
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About author : नाम : डॉ० चिरंजी लाल ‘चंचल’ जन्म तिथि : 05-01-1950 पैत्रक निवास : मौहल्ला भूवरा, टाउन एरिया– मसवासी जनपद-रामपुर, उत्तर प्रदेश पिता का नाम : निर्वाण प्राप्त श्रध्देय कड़ढे लाल जी माता का नाम : निर्वाण प्राप्त श्रध्देया (श्रीमती ) मंगिया देवी जी शिक्षा : एम० ए० (हिन्दी, संस्कृत, दर्शनशास्त्र), बी० एड०, पी० एच० डी० कार्य क्षेत्र : सेवानिवृत प्रवक्ता, हिन्दी संस्कृत, सनातन धर्म इन्टर कालेज, रामपुर सम्प्रति : संस्थापक एवं प्रबन्धक, इनोवेटिव पब्लिक जूनियर हाई स्कूल, मुरादाबाद प्रकाशित कृतियाँ गीतावली 1. ऐसे न समर्पण कर दूँगा 2. कैसे न समर्पण कर दूँगा 3. तथाता 4. अथोsहम 5. तथात्वम 6. सम्मासती 7. अपने दीपक आप सभी 8. नाम क्या दूँ ? 9. तत्त्वमसि 10. शीशों का मसीहा कौन यहाँ? 11. मिला कोई नहीं मिलने 12. हमने कब डाले हथियार 13. जमीं पर हैं पटके 14. तुम कौन हो? 15. भय करता पैदा भगवान कवितावली 1. सूरज निकलता नही 2. हार नही मानूँगा 3. क्या इस ब्यूह को तोड़ सकोगे 4. बैठे हैं तैयार 5. तुम्हारा क्या ? 6. यह कैसा जनतंत्र दोहावली 1. भाग एक 2. भाग दो खण्ड काव्य 1. चतुर्दिक नमन गज़लें 1. बिखरा हूँ मैं 2. संसार क्या जाने ? मुक्तकावली सम्मान : दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा डॉ० अम्बेडकर फेलोशिप, डॉ० अम्बेडकर मेमोरियल ट्रस्ट अलीगढ़ द्वारा अन्तराष्ट्रीय भीम रत्न पुरस्कार, भारतीय बौध्द महासभा उ०प्र० द्वारा साहित्य एवं समाज के क्षेत्र में दी जाने वाली डॉ० अम्बेडकर फेलोशिप से सम्मानित, अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध I सम्पर्क सूत्र : इनोवेटिव पब्लिक स्कूल, निकट चौहानों की मिलक, मण्डी समिति रोड मुरादाबाद उ०प्र० पिन- 244001, मोब.न. 09997344811, 09897777499 Email ID:shilshasta1950@gmail.com
About book : ’भय करता पैदा भगवान’ काव्य कृति में में दो तरह की रचनाएँ हैं। पहली वे अपनी शक्ति क्षीण हो जाने की स्थिति में जब कोई भी अपने मनबांछित कार्यो को करने में असफल हो जाता है। दूसरा तथ्य ये है कि दूसरों को निमंत्रित करने उनके व्यक्तित्व का संक्षिप्तीकरण करने के लिए हम किसी को डराते धमकाते भरमाते या किसी की शरण में जाने को प्रेरित या बाध्य करते हैं। इस पुस्तक में ऐसी ही तमाम रचनाएँ हैं जो हमें हमारे करीब लाती हैं। सफलताओं को कैसे अर्जित किया जा सकता है। सुख और दुःख से मुक्त होकर आनन्दित कैसे रहा जा सकता है। जो अब है सो सब है जो प्राप्त है वो पर्याप्त है की भावना को कैसे आत्मसात कर सकारात्मक और सृजनात्मक रूप से जीया जा सकता है। किसी को अपने और अपने जीवन के बीच में लाए बिना ये रचनाएँ उस दिशा की और लेे जाने का हमें साहस प्रदान करती हैं। हमारी वैसाखियाँ छीनकर हमें हमारें पैरों पर खड़ा करने हेतु उद्धत करती है।