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ISBN : 978-81-19281-13-8

Category : Academic

Catalogue : Mathematics and Science

ID : SB20551

औषधीय पादप उपयोगिता प्रसारण एवं संरक्षण

na

भगवानदास

Paperback

650.00

e Book

299.00

Pages : 354

Language : Hindi

PAPERBACK Price : 650.00

About Book

प्रस्तुत पुस्तक आम जन –समुदाय के बीच कुछ ऐसे औषधीय,पादपों(पौधों ) की जानकारी पहुँचाने का प्रयास है जिनका मानव- जीवन एवं स्वास्थ्य रक्षा में महत्वपूर्ण स्थान है\यह पुस्तक न सिर्फ उन पादपों (पौधों)के विषय में सामान्य जानकारी प्रदान करती है,साथ ही उनके औषधीय उपयोग एवं प्रसारण (कृषि-तकनीक),संरक्षण के विषय में भी पाठकों की उत्सुकता शांत करने का प्रयास करती है\पादपों (पौधों)को पहचानने,उनकी उपयोगिता को समझने एवं उनके प्रसारण(कृषि-तकनीक)में पाठकों को सुविधा हो,इस आशय से पुस्तक में 76 महत्वपूर्ण औषधीय पादपों (पौधों)का वर्णन किया गया है ,जिनको(05 ) पाँच भागों में क्रमशः 1-वृक्ष,2-झाड़ी,3-शाकीय पादप,4-बेलें एवं लताएँ.5 -अर्ध-जलीय एवं जलीय पादप में बांटा गया है\ प्रत्येक पादप की पहिचान के लिए कुछ महत्वपूर्ण चित्र,भौगोलिक वितरण, ऋतु-जैविकी, नर्सरी में उन पादपों (पौधों)को उगाये जाने (प्रसारण /कृषि तकनीक )के तरीके एवं पादपों के औषधीय उपयोग से संवन्धित संक्षिप्त जानकारी प्रदान की गयी है\कुछ महत्वपूर्ण पादपों से छाल एवं गोंद निकालने की विधि तथा चूर्ण,अवलेह, आरिष्ट और काढ़ा आदि बनाने की विधि के संवंध में भी जानकारी दी गई है\पुस्तक का प्रयास है कि भारत के किसानों एवं आम जन-मानस तक इन औषधीय पादपों से संवन्धित जानकारी सरल भाषा में पहुंचे ताकि न सिर्फ उनका ज्ञान वर्धन हो सके अपितु वह इन उपयोगी पादपों के संरक्षण के प्रति भी प्रेरित हो संके .


About Author

पुस्तक के लेखक भगवान दास का जन्म पंद्रह अक्टूबर 1964 को उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के एक कस्बे राठ के एक दूर-दराज गाँव- ददरी के एक मध्यम वर्गीय-किसान परिवार में हुआ। लेखक की प्रारम्भिक एवं माध्यमिक शिक्षा ननिहाल, ग्राम ,कछवां-कलाँ, में हुई और उच्च शिक्षा-दीक्षा राठ में ही हुई जहां से लेखक ने ब्रह्मानन्द महाविद्यालय,राठ से वर्ष 1988 में सस्य विज्ञान से स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की। इसके पश्चात वर्ष 1989-1994 के मध्य झाँसी स्थित भारतीय चरागाह एव चारा अनुसंधान संस्थान में क्षेत्र सहायक के रूप में कार्य किया। वर्ष 1994 में कनिष्ठ तकनीकी सहायक के रूप में राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान,लखनऊ में चयनित होने के बाद से लगातार संस्थान के दूरस्थ अनुसंधान प्रक्षेत्र बंथरा, औरांवा एवं गेहरू में दिव्य,लुप्तप्राय, संकटग्रस्त,एवं औषधीय उपयोग की वनस्पतियों के प्रसारण,पौधारोपण,संरक्षण,कृषि तकनीक,ऊसर-सुधार, आदि कार्यों में 28 वर्षों से अपनी सेवाएँ दे रहे हैं एवं वर्तमान में संस्थान में वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। लेखक द्वारा प्रस्तुत पुस्तक में दिव्य,लुप्तप्राय एवं संकटग्रस्त एवं बुंदेलखंड जैव मंडल क्षेत्र एवं बंथरा सस्थान के प्रक्षेत्र में मौजूदा औषधीय महत्त्व के पौधों की देख रेख कर,उनके प्रसारण,पौधारोपण, एवं संरक्षण,कृषि -तकनीक के अपने 28,वर्षों के कार्यों के अनुभव,का अवलोकन एवं प्रस्तुतीकरण हैं, इसके अतिरिक्त संस्थान की राजभाषा पत्रिका,विज्ञान-वाणी में कई लेख प्रकाशित हैं

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