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ISBN : 978-81-19084-53-1

Category : Academic

Catalogue : Reference

ID : SB20505

आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों का शास्त्रीय अध्ययन (‘कामायनी’ से ‘आंजनेय’ तक)

(बाबा साहेब भीमराव अम्बेदकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर द्वारा डी0 लिट्. की उपाधि के लिए स्वीकृत शोध-प्रबन्ध)

DR. NAWAL KISHORE PRASAD SHRIVASTAV

Hardcase

1500.00

e Book

450.00

Pages : 460

Language : Hindi

About Book

बाबा साहेब भीमराव अम्बेदकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर द्वारा डी0 लिट्. की उपाधि के लिए स्वीकृत शोध-प्रबन्ध ‘आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों का शास्त्रीय अध्ययन (‘कामायनी’ से ‘आंजनेय’ तक)’ कई दृष्टियों से एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। अबतक हिन्दी भाषा में रचित श्रेष्ठ महाकाव्यों का अनुशीलन इस ग्रन्थ में किया गया है। जयशंकर प्रसाद रचित ‘कामायनी’ से लेकर डॉ0 श्यामनन्दन किशोर रचित ‘आंजनेय’ महाकाव्य तक बहुत से महाकाव्य लिखे जा चुके हैं। इनमें कुछ ऐसे भी ग्रन्थ हैं जिनमें काव्यात्मकता तो है, किन्तु महाकाव्यात्मकता तो नहीं ही है। लेखक की दृष्टि में जो ग्रन्थ सच्चे अर्थों में महाकाव्य है केवल उन्हीं का शास्त्रीय अध्ययन इस ग्रन्थ में प्रस्तुत किया गया है। किसी भी ग्रन्थ का शास्त्रीय अध्ययन करने के लिए यह आवश्यक है कि प्राचीन और नवीन आलोचकों तथा विद्वानों द्वारा निर्दिष्ट विशिष्टताओं का समावेश उसमें हो। शास्त्रीय दृष्टि से महाकाव्य का अनुशीलन करने के क्रम में उसके भाव-पक्ष और कला-पक्ष को भी ध्यान में रखना पड़ता है। लेखक ने इस शोध-प्रबन्ध के अन्तर्गत अपना जो विचार व्यक्त किया है वह सर्वथा नवीन है। उन्होंने नये ढंग से महाकाव्य को पारिभाषित करने तथा उसका अनुशीलन करने का प्रयास किया है।


About Author

इस शोध-प्रबन्ध के लेखक डॉ0 नवल किशोर प्रसाद श्रीवास्तव, एम0 ए0 (हिन्दी-संस्कृत), पी-एच0 डी0, डी0 लिट्., राजनारायण कॉलेज, हाजीपुर के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के रीडर एवं अध्यक्ष पद से अवकाश-प्राप्त कर आज भी साहित्य-सृजन में लगे हुए हैं। इनके निर्देशन में दर्जनाधिक शोधार्थियों को पी-एच0 डी0 की उपाधि मिल चुकी है। बहुतेरे शोधार्थियों को इन्होंने दिशा-निर्देश भी दिया है। इन्होंने साहित्य की विविध विधाओं में दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का प्रणयन किया है। विभिन्न साहित्यिक गोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर इनके भाषण सराहणीय रहे हैं। अच्छे-अच्छे साहित्यकारों से सम्पर्क बनाये रखने के कारण इनकी प्रतिभा का जो विकास हुआ है, उससे हिन्दी साहित्य की श्री-वृद्धि हुई है। समय-समय पर आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी इनके कार्यक्रम होते रहे हैं। विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से भी इन्हें पुरस्कृत और सम्मानित किया जा चुका है।

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