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ISBN : 978-81-19084-56-2

Category : Academic

Catalogue : Reference

ID : SB20504

आधुनिक हिन्दी कविता में दाम्पत्य जीवन के आयाम

(बाबा साहेब भीमराव अम्बेदकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर द्वारा पी-एच0 डी0 की उपाधि के लिए स्वीकृत शोध-प्रबन्ध)

DR. NAWAL KISHORE PRASAD SHRIVASTAV

Hardcase

1500.00

e Book

250.00

Pages : 228

Language : Hindi

About Book

बाबा साहेब भीमराव अम्बेदकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर द्वारा पी-एच0 डी0 की उपाधि के लिए स्वीकृत इस शोध-प्रबन्ध में दाम्पत्य जीवन की झाँकी प्रस्तुत की गई है। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास होता गया है वैसे-वैसे दाम्पत्य जीवन में भी बदलाव आता गया है। आधुनिक दाम्पत्य जीवन पर वैज्ञानिक आविष्कारों तथा मनोविज्ञान का भी प्रभाव पड़ा है। आज संयुक्त परिवार टूट रहा है और वैयक्तिक परिवार बनता जा रहा है। आर्थिक स्थिति एवं शिक्षा का प्रभाव भी दाम्पत्य जीवन पर पड़ा है। इस शोध-प्रबन्ध के अन्तर्गत दाम्पत्य प्रेम की प्रस्तुती के साथ-साथ प्रेम के अन्य रूपों की भी चर्चा की गई है। प्रेम एक ऐसा भाव है जिसकी सही-सही परिभाषा आजतक नहीं बन पाई है। प्रेम किया नहीं जाता, वह तो अचानक हो जाता है और कैसे हो जाता है, इसका पता न तो प्रेमी-प्रेमिका को चल पाता है और न दम्पति को ही। प्रेम के रहस्य को आजतक ठीक से कोई भी नहीं जान सका। इसीलिए कतिपय विद्वानों की दृष्टि में प्रेम ही ईश्वर है और ईश्वर ही प्रेम है। इस शोध-प्रबन्ध के अन्तर्गत दाम्पत्य प्रेम की व्यंजना यथार्थ के धरातल पर की गई है। इसीलिए इसमें ‘सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम्’ का स्वतः ही समावेश हो गया है। इसमें दाम्पत्य प्रेम से संबंधित ऐसी-ऐसी जानकारी दी गई है जिससे प्रायः लोग अपरिचित है। यह शोध-प्रबन्ध विद्वानों के लिए लाभप्रद तो है ही, शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी है।


About Author

इस शोध-प्रबन्ध के लेखक डॉ0 नवल किशोर प्रसाद श्रीवास्तव, एम0 ए0 (हिन्दी-संस्कृत), पी-एच0 डी0, डी0 लिट्., राजनारायण कॉलेज, हाजीपुर के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के रीडर एवं अध्यक्ष पद से अवकाश-प्राप्त कर आज भी साहित्य-सृजन में लगे हुए हैं। इनके निर्देशन में दर्जनाधिक शोधार्थियों को पी-एच0 डी0 की उपाधि मिल चुकी है। बहुतेरे शोधार्थियों को इन्होंने दिशा-निर्देश भी दिया है। इन्होंने साहित्य की विविध विधाओं में दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का प्रणयन किया है। विभिन्न साहित्यिक गोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर इनके भाषण सराहणीय रहे हैं। अच्छे-अच्छे साहित्यकारों से सम्पर्क बनाये रखने के कारण इनकी प्रतिभा का जो विकास हुआ है, उससे हिन्दी साहित्य की श्री-वृद्धि हुई है। समय-समय पर आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी इनके कार्यक्रम होते रहे हैं। विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से भी इन्हें पुरस्कृत और सम्मानित किया जा चुका है।

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