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5.0
About book : मेरे जीवन के उतार चढ़ाव से भरे 34 वर्षों में मैंने अपने आस पास जो कुछ देखा और अनुभव किया उन्हें पंक्तियों में समेटने की कोशिश की है | यह मेरी पहली पुस्तक है। इसके भीतर जो कविताएं हैं वो उन लोगों के स्वर हैं जिन्हे मैंने जीवन में मूक पाया है । वे लोग जो बोलना तो चाहते थे पर या तो उनके पास शब्द नहीं थे या अभिव्यक्ति का कोई माध्यम नही था । विभिन्न घटनाओं को मैंने अपने नजरिए से देखा परखा और समझा है और अनुभव सार में जो कुछ भी मुझे प्राप्त हुआ है वही लिखा गया है मुझसे । इस पुस्तक में मैंने अपने व्यक्तित्व का पूरा का पूरा हिस्सा पाठकों के बीच रख दिया है । जो भी पाठक इनमें रखी कविताओं को पढ़ेगा निश्चित ही उस मनोदशा और स्थिति विशेष को अनुभव करेंगे जैसा मैंने किया है । इस पुस्तक में हर कविता के पीछे एक छोटी सी कहानी छुपी हुई है । इस पुस्तक की कविताएं मैंने काफी दिनों से लिख ली थी पर प्रकाशन का मन हाल में बना । इस पुस्तक में मेरे द्वारा उन सभी पात्रों के मनोभावों को यथावत रखने की कोशिश की गई है तथा कविताओं में जो भी है वो मेरी दृष्टि में उनकी सृष्टि ही है । लिखी गई कविताओं में कहीं कहीं प्रकृति से अपार प्रेम दिखेगा ,कहीं कहीं मजदूर वर्ग के प्रति समानुभूति ,कहीं कहीं सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं पर करारा व्यंग्य मिलेगा तो कहीं प्रेम का अल्हड़पन भी देखने मिलेगा । समग्रता में देखा जाए तो किसी एक रस से बंधी हुई नहीं है ये पुस्तक । इसमें एक आम आदमी के जीवन के इर्द गिर्द घट रही छोटी बड़ी घटनाओं का संग्रह है अनुभव है । इस पुस्तक में ज्यादा क्लिष्ट और कठिन शब्दों से बचा गया है । आधुनिक हिंदी में जिन सहज शब्दों का प्रयोग आमजन के बीच प्रचलित है उन्ही के सहारे अपना दृष्टिकोण रखने की कोशिश की गई है । इस पुस्तक के संकलन के समय मैंने प्रचलित विधा मानदंडों और प्रतिबंधात्मक नियमों की भी खास परवाह नही की है । सच कहूं तो मुझे ये एक नए प्रयोग की तरह अनुभव हुआ है । अब जो भी है और जैसा है इसका निर्णय पाठकगण पर छोड़ता हूं ।मैंने पूरी ईमानदारी और मेहनत से रचनाओं को रचा है और इसमें किसी भी अन्य स्रोत या व्यक्ति का कोई योगदान नहीं है । ये कविताएं मेरे जीवन के अनुभव हैं जिन्हे शब्दों में पिरोने का ये एक छोटा सा प्रयास है ।
About author : मैं जय कुमार मानिकपुरी पिता -स्वर्गीय त्रिभुवन दास मानिकपुरी माता - श्रीमती गिरिजा देवी मानिकपुरी छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के छोटे से गांव लमकेना का निवासी । 1989 में जन्मा। मैं 18 साल का था तभी मेरे पिता जी का निधन हो गया ।मां ने पाल-पोसकर बड़ा किया। विपन्नता के बावजूद मेरी पढ़ाई पूरी कराई । बचपन से कविता ,कहानी और उपन्यास आदि पढ़ने लिखने का शौक । लेखन भी बचपन से । आज तक और आगे भी जब तक सांस है जारी रहेगी ।