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ISBN : 978-93-6087-769-9
Category : Fiction
Catalogue : Poetry
ID : SB21241

प्रेरणा की पोखर में

NA

KANCHAN JWALA KUNDAN

Paperback
249.00
e Book
99.00
Pages : 134
Language : Hindi
PAPERBACK Price : 249.00

About author : पुरस्कार एवं सम्मान- उप राष्ट्रपति के हाथों एमफिल की उपाधि. राष्ट्रपति प्रतिभावान छात्र पुरस्कार. सूर्या फाउंडेशन- एक्सीलेंट इन गुड हैबिट अवार्ड. नवरंग काव्य मंच- युवा कलम सम्मान. फ्रेंड्स फॉरेवर क्लब- पत्रकारिता सम्मान. गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी- पत्रकारिता सम्मान. स्वराज एक्सप्रेस न्यूज़ चैनल- उत्कृष्ट पत्रकारिता सम्मान. प्रकाशित कृतियाँ- अखिल भारतीय काव्य संकलन- काव्य के रूद्राक्ष में कविताएँ शामिल. नवभारत, नई दुनिया, हरिभूमि, दैनिक भास्कर, पत्रिका, देशबंधु, शास्वत राष्ट्रबोध, पांचजन्य, अमर उजाला, छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस, हिमशिखर, लक्ष्यभेद पब्लिकेशन्स, फोर्थ मिरर, न्यूज़ ऑन डिजिटल, खूंटे न्यूज़ इत्यादि पत्र पत्रिकाओं एवं वेबपोर्टलों में रचनाएँ प्रकाशित... अनुभव- देशबंधु- सब एडिटर, पत्रिका- सब एडिटर, पायनियर- सब एडिटर, स्वराज एक्सप्रेस न्यूज़ चैनल- रिपोर्टर, लल्लूराम डॉट कॉम- कंटेंट राइटर. न्यूज़ प्लस 21- सीनियर रिपोर्टर. हरिभूमि- कंटेंट राइटर. संपर्क सूत्र- kundanjwala@gmail.com

About book : मेरी पहली काव्य संग्रह ‘प्रेरणा का पोखर’ आपके हाथों में है. पहली किताब छपने से बेहद उत्साहित हूँ. आर्थिक पाया इतना डगमग है कि डगमगाते-डगमगाते, संभलते-संभलते सांस चल रही है. इसलिए किताब छापने-छपवाने का दुस्साहस नहीं कर पा रहा था. हालाँकि प्रयास कई बार किया लेकिन आर्थिक मामले आड़े आ जाते थे. हिंदी पट्टी के कवि-लेखकों की आर्थिक दुर्गति देखने-सुनने के बाद मैं साहित्य सेवा से विमुख रहने का लगातार जतन करता रहा. अफ़सोस कि किसी भी जतन में कामयाब नहीं हुआ. शायद ये कवि की मजबूरी है. कोई व्यक्ति मानसिक रूप से इस क्रूर दुनिया से, दुनियादारी से अलग रहने में शायद सफल हो जाए. लेकिन कोई भी व्यक्ति अपने दिल से हरगिज़ अलग नहीं हो सकता. अपने दिल से कभी विलग नहीं हो सकता. मामला दिल की मजबूरी का है. कोई अपने मूल स्वभाव के धारे से कभी किनारे नहीं हो सकता. अपने मूल स्वभाव के धारे में सतत बहते रहना सबकी मजबूरी है. शायद यही नियति है और शायद यही प्रकृति भी... शून्य से आगे बढ़ने की बात होती तो मैं सोचता इस बात में कोई बात नहीं है. मैं माइनस की स्थिति से ऊपर उठा हूँ. अब जाकर लगता है कि माइनस स्थिति से जूझते-जूझते, लड़ते-लड़ते शायद अब शून्य तक पहुंचा हूँ. अब पूरा भरोसा है कि तेज गति से आगे बढ़ पाऊँगा. आपके साथ कदम से कदम मिलाकर चल पाऊँगा. जिंदगी के सफ़र में कोई जन्म से ही (बाय बर्थ ) गरीबी के गर्त में गिर जाए तो सफ़र कितना कठिन हो जाता है. गर्त से ऊपर उठकर समतल सड़क पर आ खड़ा होना, आपके साथ चलने के लिए, आपके साथ दौड़ने के लिए ये बात किसी युद्ध में फ़तह से कम नहीं है.

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