About Book
पिघलते दर्द मेरा दूसरा प्रयास है जो मेरी गजलों एवं कविताओं का संग्रह है।गजल में मैने सरल उर्दु लफ्जों का प्रयोग किया है जिससे आम आदमी भी गजल का आनंद ले सकें।इस पुस्तक में प्रार्थना है,प्रेम गीत है तो विरह वेदना भी है।प्रकृति व सामयिक विकृतियों पर भी लिखने का प्रयास किया है। लोगों की पसन्द के शेर भी हैं। प्रबुद्ध पाठक जानते हैं कि जहाँ हुस्न है वहाँ इश्क भी है,जहाँ मुहब्बत है वहाँ इकरार है, तकरार है और जुदाई भी है। इसलिए इसमें तड़प है, बेकरारी है और उदासी है।इस किताब में इन सबका सम्मिश्रण है जो पाठकों को आनन्दित करेगा तो उद्वेलित भी करेगा। इस पुस्तक में दया करें हे विश्वनाथ, तुम चाहत हो मेरी, जीवन का श्रृंगार, चलो गाँव चलते हैं,वट-बृक्ष सूख जायेगा, सारथी बन साथ हो,गल रहा मनुष्य है,स्वर्ग इससे सुन्दर न होगा,माँ के आंचल में जैसी कवितायें है जो आपको आनंदित करेगी।दूसरी तरफ मैं गुजरा वक्त नहीं हूँ, समेट लूँ तुझे अपनी साँसों में,अभी भी आह निकलती है, मुहब्बत के परिन्दे हैं, हम बहकते रहे,गर तुम साथ हो,देख हुस्न-ए-शबाब आपका,तेरे आने का इंतजार, तुम्हारी सुर्ख आँखों में,लिफाफे में खुशनुमा यादें,दर्द पिघल रहें होंगे,इश्क उम्र देखता कहाँ है,जुनूनी इश्क जैसी गजलें हैं जो पाठकों को मिलन व जुदाई की फुहार से भिगोती रहेंगी। मुझे पूरी उम्मीद है कि यह पुस्तक पाठकों को पसन्द आयेगी।
About Author
परिचय
नाम-रमेश उपाध्याय
जन्म स्थान-ग्राम-उजियार, जिला - बलिया (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा-बी.ए.(आनर्स)अर्थशास्त्र,पटना वि.वि.
एम.ए.-अर्थशास्त्र (पटना वि. वि.)
सेवा --
1-गाँधी बिद्या संस्थान वाराणसी में रिसर्च एसोसिएट,
2-अनुग्रह नारायण सामाजिक अध्ययन
संस्थान पटना में रिसर्च आफिसर
3-उत्तर विहार ग्रामीण बैंक में मई 1977 में शाखा प्रबंधक के रूप में योगदान व फरवरी 2010 में क्षेत्रीय प्रबंधक पद से पूर्णिया से सेवानिवृत्त।
प्रकाशन--
1-अंग्रेजी शोध-पत्र (Socio-economic condition of villages in E.Uttar
Pradesh)खादी ग्रामोदय में प्रकाशित 1974.
2-बैक की पत्रिका में एक कविता 'मेरा बचपन '
3-सिसकती यादें(कविता व गजल संग्रह) प्रकाशन के अन्तिम चरण में।
शौक-बैडमिंटन खेलना, लिखना,समुद्र स्थलों का भ्रमण।
वर्तमान निवास- सुन्दरपुर,वाराणसी।
'पिघलते दर्द' मेरा दूसरा प्रयास है।मेरी पहली रचना 'सिसकती यादें' प्रकाशन के अन्तिम चरण में है।मैं अर्थशास्त्र का विद्यार्थी रहा हूँ और सेवारत भी पहले रिसर्च संस्थान क्रमशः गाँधी विद्या संस्थान वाराणसी व अनुग्रह नारायण सामाजिक अध्ययन संस्थान पटना में रिसर्च एसोसिएट/आफिसर के रुप में रहा।गाँधी विद्या संस्थान के अध्यक्ष लोकनायक स्व.जय प्रकाश नारायण जी थे।1974 के विहार आन्दोलन के प्रणेता होने के नाते 1975 में इमर्जेंसी लगने के बाद भारत सरकार से मिलने वाला ग्रान्ट बन्द हो गया व प्रशासन का पहरा पड़ गया।ऐसे में कुछ माह अनुग्रह नारायण सा. अ. संस्थान में काम करने के बाद अनिश्चितता की स्थिति में मई 1977 में बैंक सेवा में शाखा प्रबंधक के रुप में कार्यरत हुआ।अन्ततः फरवरी 2010 में क्षेत्रीय प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुआ।
सेवानिवृत्ति के बाद मेरी माँ स्व.रोशनी उपाध्याय व बड़े भाई स्व विजयानन्द उपाध्याय की पूर्व इच्छानुसार बनारस में रहने लगा पर गाँव से दूर नहीं हुआ। बाबा की नगरी बनारस में रहने की प्रबल इच्छा तो मेरी भी बचपन से थी, खासकर इसलिए कि मेरे परिवार में मेरे पिता से लेकर दोनो भाई व भतीजे बनारस में ही पढ़े थे।लेकिन मैं जब बी.एच.यू में प्रि-यूनि.में प्रवेश लेने आया तो उम्र कम होने के कारण मुझे निराश होकर बाद में पटना विश्वविद्यालय में प्रवेश लेना पड़ा।
वर्ष 2010 से बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में रहने का सौभाग्य मिला।सेवा काल की व्यस्ततम दिनचर्या से निकलकर कार्य शून्य की स्थिति में लगा कि कुछ चैन से जीवन कटेगा।लेकिन सोच के अनुसार जीवन नहीं चलता है।खैर,सुख-दुःख के बीच जीवन आगे बढ़ता रहा।इस खालीपन में कविता व गजल लिखने का ख्याल कब आया यह पता ही नहीं चला। जहाँ तक याद है वर्ष 2021में मैने लिखना प्रारंभ किया। कुछ मित्रों के प्रोत्साहन से मेरी अभिरुचि बढ़ती गई और मैं वर्ष 2023 से लगातार लिख रहा हूँ।
हिन्दी और संस्कृत का ज्ञान तो कुछ अध्ययन से व अथिक संस्कृत के विद्वान व प्रखर वक्ता पिता स्वर्गीय पं.राम कुमार उपाध्याय के सानिध्य एवं मार्गदर्शन से प्राप्त हुआ।मेरी प्राथमिक शिक्षा गाँव के इस्लामियां स्कूल में हुई थी जहाँ मेरे मोहल्ले के हिन्दू-मुस्लमान सब बच्चे साथ पढ़ते थे।उर्दु की पढ़ाई अलग होती थी।कुछ उर्दु के लफ्ज यहाँ सीखे,कुछ दोस्तों की संगत में तो कुछ शेर व गजल पढ़कर।दोनों भाषाओं की थोड़ी-बहुत जानकारी से लिखने में मुझे बहुत सहूलियत हुई।
लेखन की इस यात्रा में मेरा निरन्तर उत्साहवर्धन करने वाले मेरे बैंक के मित्र सर्वश्री विजय कुमार सिंह, अनुप कुमार विश्वास, संतोष कुमार झा,राज कुमार प्रसाद व दिलीप गुप्ता को हृदय से धन्यवाद देता हूँ। बनारस में एक परिसर मे सह- निवासी प्रो.आर एन तिवारी,श्री सुरेंद्र कुमार राय व श्री घनश्याम दास गुप्ता को भी प्रोत्साहित करने के लिए विनम्र धन्यवाद।मेरे समधी श्री अखिलेश पाण्डेय के व्यंग्यात्मक प्रहारों और उत्साहवर्धन के लिए विशेष धन्यवाद।
सरिता की धार की तरह अविरल साथ बहती निश्छल स्वभाव की सहधर्मिणी ललिता उपाध्याय के धैर्यपूर्ण सहयोग के बिना यह लेखन सम्भव नहीं था। मेरी छोटी पुत्री अपर्णा भी सदा लेखन के लिए प्रेरित करती रही।दोनों को शुभ कामनायें।