About author : मेरा नाम प्रवीण देव चौहान है मैं शिवपुरी (मध्य प्रदेश) का वासी हूँ
About book : Preface - हमे एहसास होने लगता है कि हमारे माता पिता बूढ़े होते जा रहे हैं उनके चलने मैं अन्तर आ जाता है बैठने उठने से लेकर देखने तक मैं कमज़ोरी आ जाती है उनका शरीर पहले जैसा मजबूत नहीं रहता उनकी यादों मैं कुछ भी ज़्यादा देर नहीं टिकता वैसे ही मेरे पापा का सफ़र मेरे सामने था वो डूबता सूरज मेरी नज़र के सामने था सामने थे पर्चे जिनमे दवाई के नाम लिखे थे सामने था उनका बूढ़ा शरीर जो सहारा मांगता था उनका मुझसे पूछना क्या नाम है तुम्हारा मेरे हाथों के सहारे घर के मंदिर तक जाना वो बूढ़ी आंखें जो कभी भी बंद हो सकती थी वो रुकती सांसें जो कभी भी थम सकती थी ये कुछ वैसा ही मंज़र था जहां आपका बाप बच्चा हो चला था आपको अपने पैरों पर खड़ा करने वाला आज खुद चलने के लिए आपका हाथ खोजता था कभी प्यार से पुकारता था अपने बच्चे पापा को कभी धीरे से डांटना भी पड़ता था कभी उनकी हल्की सी लाठी से थोड़ा सा पिटना भी पड़ता था पापा छोटे से बच्चे हो चले थे वो अपने बच्चों को अब भूलने लगे थे कभी पूछते थे तुम हमारे ही बेटे हो ना और कभी पूछते थे क्या तुम हमारी शादी में आए थे अपने पिता का बचपन देख रहा था कभी मुस्कुराता था कभी चुपके से रो देता था पापा के पास समय कम था ये महसूस करता था कभी उनको मीठी मिठाई कभी कड़वी दवा देता था अपने जन्मदाता को टूटते देखना आसान नहीं था आज जो मेरे साथ नहीं है वो आज से पहले इतना साथ नहीं था